
बात यहां पर ये आती है कि जब वन विभाग और पुलिस विभाग एक साथ उस स्थान पर अवैध अतिक्रमण को रोकने गया था तो वहां के रहवासियों के विरोध और जबरजस्त गालियों के बौछार के हमले से दुम दबाकर भागते दिखे, और अपने जिम्मेदारीयो को छोड़ कर सलाह देकर वापस अपने विभागों की ओर लौट गए विषय यहां पर ये उठता है कि जिम्मेदार विभाग अतिक्रमणकारियों के सामने घुटने टेक देगा निश्चित रुप से आने वाले समय में जो मनेंद्रगढ़ चिरमिरी में जो दोहरी रोड की बात माननीय स्थानीय विधायक द्वारा कहा गया था क्या उस सड़क बनाने के दौरान तक सड़क के रेंज मेंआने वाले इस तरह के अतिक्रमित मकान टूटेंगे तो उस समय क्या मुआवजा दिया जाएगा अथवा नहीं दिया जाएगा? रेंजर ने यह भी कहा कि उन्होंने इस क्षेत्र से आने वाले माननीय मंत्री जी से इन लोगों के पट्टे दिलवाने की बात भी रखी थी, मगर बात रही पट्टे की तो यहां सबसे महत्त्वपूर्ण बिंदू यह भी है सरकार ऐसे लाभकारी योजनाएं बनाती हैं ऐसे लोगों के लिए वन भुमि पट्टा बांटने के लिए मगर पट्टा वितरण का भी एक दायरा होता है, आज कब्जा कर लेने से कल पट्टा प्रदाय कर देना किसी भी तरह से संभव नहीं है, वो भी खास कर ऐसे चिन्हांकित स्थानों पर जो अतिमहत्वपूर्ण होते हैं और जहां डबल लेन की सड़क यहां बनने की बातें छत्तीसगढ़ प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जी द्वारा उनके उद्बोधन में कई बार कहा भी है और जो कि यहां लोगों के बीच में एक अहम चर्चा बना हुआ है, ऐसी स्थिति में साजापहाड़ एक ऐसा रोड है जिससे मनेंद्रगढ़ तक की दूरी काफी घटी है और जिला एमसीबी का जो प्रशासनिक कार्य है चूंकि जिला एमसीबी के कलेक्टर मनेंद्रगढ़ में बैठते हैं, ऐसी स्थिति में खड़गवां ब्लॉक एवं चिरमिरी शहर के लोग इसी मुख्य मार्ग से गुज़रते हैं और वहीं एक ज़िम्मेदार अधिकारी लोगों के इन शब्दों के प्रहार से डर कर वहां के कब्जाधारियों को सलाह देते नज़र आए, जो कि कहां तक वाजिब है?
जब पत्रकारों ने रेंजर से सवाल किया कि इस अवैद्य अतिक्रमण के साथ ही इसके इर्द गिर्द वन भुमि पर कब्जा कर अन्य अवैद्य निर्माण कार्य किए जा चुके हैं उस पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की गई जिसके संबंध में रेंजर द्वारा बड़ी बेतुकी सा ब्यान दिया गया कि सड़क के किनारे से दस मीटर तक के दायरे में पी डब्लू डी विभाग को कार्यवाही करनी चाहिए मगर पीडब्ल्यूडी विभाग मौके पर मौजूद नहीं है, जिस संबंध में पीडब्ल्यूडी विभाग संपर्क कर सवाल किए गए तब यह जानकारी मिली कि नियमानुसार वन भुमि पर पीडब्ल्यूडी विभाग को वन विभाग द्वारा सड़क निर्माण कार्य के लिए अधिग्रहण दे दिया जाता है, जिसके बाद यदि कोई सड़क निर्माण कार्य होता है और उस रोड को क्षति पहुंचाया जाता है तब पीडब्ल्यूडी विभाग निश्चित रूप से कार्यवाही कर सकता है मगर ऐसे मामलों में जब वन विभाग की भुमि पर यदि अवैद्य कब्जा रोड बगल से ही किए जाते हैं तब वन विभाग ही उस पर कार्रवाई करने के लिए ज़िम्मेदार है ना कि पीडब्ल्यूडी विभाग।
विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार रेंजर साहब के पीठ दिखाते ही पुनः शाम वहां पर निर्माण कर अपनी गति पर आ गया, तो क्या वन अमला इतना असक्षम हो चुका है जो कि वहां के लोगों के आक्रामकता को देख कर और उनके द्वारा दिए जा रहे गालियों को सुन कर ही वापस हो जाए, जबकि उनके साथ वहां पुलिस अमला भी मौजूद था?
और उल्लेखनीय है कि जो केराडोल का क्षेत्र है उस क्षेत्र में काफी आपराधिक गतिविधियों की सूचना पोड़ी थाने से मिलती रही हैं, तो क्या इस रूप में भी पुलिस और वन अमला डरा हुआ है? क्या उस क्षेत्र में जाने से या किसी तरह की कार्यवाही करने से ये डरते हैं? क्योंकि कार्यवाही करने पहुंचे वन विभाग की टीम एवं कर्मचारी को वहां के लोगों द्वारा साफ धमकियां भी दीं गईं यह कहते हुए कि यदि वन विभाग के कर्मचारी वहां नज़र आ गए तो वहां के लोगों द्वारा उन्हें क्षति भी पहुंचाई जाएगी।
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