
आपको बता दें कि यह जो तस्वीर है, यह आज शाम की है जहां गुरूवार बाजार लगने के दौरान जब लोग बाजार कर सामान अपने घर की ओर ले जाते हैं,उसी दौरान चोरों से सुरक्षा करने के लिए पुलिस तो मौजूद होती है क्योंकि बगल में ही चोरों की बस्ती केराडोल है, पुलिस लोगों को सुरक्षा देने में सफल नज़र आती है, लेकिन इसके अलावा वन विभाग की निष्ठुरता भी नज़र आती है, आखिर क्यों?
सप्ताह के हर गुरूवार को जी एम कॉम्प्लेक्स मेन गेट के सामने बाज़ार लगता है जहां आज शाम बाजार करने के लिए गाड़ियों से गुज़रने वाले राहगीरों पर बंदर आक्रामक हो गए, किसी ने गाड़ी रफ्तार में करते हुए खुद को बचाया तो कई लोगों ने रास्ते ही बदल लिए, यहां के आम नागरिकों ने बताया कि खुद को बचाने के प्रयास में यहां अक्सर छोटे मोटे सड़क हादसे भी होते हुए देखा गया है, कुछ छोटे तो कुछ बड़े एक्सीडेंट जिसमें लोगों को इससे पहले भी कहीं गंभीर चोटें भी आईं तो कुछ लोगों को नुक्सान भी हुआ है, आज कुछ ऐसा नज़ारा देखा गया जहां एक महिला बाजार करने के बाद घर लौट रही थी मगर रास्ते को बंदरों ने ना केवल छेंक लिया मगर उसी में एक बंदर ने उस औरत से सामान भी छीनने की कोशीश में उसे कांटने को भी दौड़ा, साथ ही एक अन्य महिला के सर पर भी बंदर ने आघात पहुंचाने का प्रयास किया, महिला ने दौड़ लगाई और नहीं पास ही में गश्त कर रहे पुलिसकर्मियों और आम लोगों ने लाठी डंडा दिखाते हुए महिला की जान बचाई।
सालों से बनी समस्या वार्ड क्रमांक 02 का जी एम कॉम्प्लेक्स जो कि एस ई सी एल चिरमिरी क्षेत्र का हेड क्वार्टर है, वहां के लोगों की मुसीबतें का जायज़ा लेने वाला आज तक कोई जन नायक नहीं बन पाया है। बहरहाल चुनाव निकाय चुनाव में पार्षद के बदलने के बाद लोगों को लगा कि इस समस्या से निजात मिलेगी, लेकिन नई शहर की सरकार बनने के बाद जी एम कॉम्प्लेक्स वासियों को ये इच्छा प्रबल हुई थी, कि बंदरों से निजात मिल जाएगा क्योंकि जी एम कॉम्प्लेक्स में नगर निगम का कोई भी कार्य नहीं किया जाता है उसके बावजूद लोगों ने पुराने पार्षद को इसलिए चुना था कि वे बंदरों की समस्या से निजात पा सकें लेकिन पार्षद केवल निकाय का होता है ना कि वन विभाग का। जब हमने नए पार्षद रामवतार से जानने की कोशिश की कि आखिर इस समस्या का समाधान कैसे होगा, तब वर्तमान पार्षद ने बताया कि रेंज के डिप्टी रेंजर सुर्य देव सिंह से बात हुई तो उस रेंजर ने पार्षद को जो बात कही वो चौंकाने वाली बात है। उन्होंने पार्षद से कहा कि वन विभाग द्वारा इन बंदरों से लोगों को निजात दिलाने के लिए जो चुनौतियां सामने खड़ी होती हैं वो ना सिर्फ मुश्किल मगर यह माना जाए कि नामुमकिन ही नज़र आती हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि बंदरों की बढ़ती आबादी और संसाधनों की कमी से वन विभाग जूंझ रहा है, जिससे आम जनमानस खुद को ना केवल मजबूर मगर असहाय भी मेहसूस कर रहे हैं, यदि बीच बचाव में किसी वन्य प्राणी की जान जाती है तो उक्त व्यक्ति के ऊपर वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 51 के तहत अपराध मानते हुए सज़ा का प्रावधान है मगर चिरमिरी शहर में और मुख्य रूप से वार्ड क्रमांक 02 में समय के साथ आक्रामक रूप में बदलते इन जंगली बंदरों से यदि किसी व्यक्ति को गंभीर चोटें आती हैं और यदि जान चली जाती है, तो इसकी सुध लेने वाला आखिर कौन है? कोई नहीं? हमारे खबर लिखने तक इस समस्या को लेकर किसी तरह के कोई ठोस कदम नहीं लिए गए हैं, आगे देखने वाली बात होगी कि बंदरों से निजात दिला पाने में वार्ड क्रमांक 02 के जनप्रतिनिधि, एस ई सी एल प्रबंधन एवं वन विभाग किस तरह से तालमेल जमा पाते हैं और लोगों को बंदरों से बचा पाने में किस हद तक सफल साबित होते हैं?
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